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Beskrivelse
'अहल्या उवाच' हिंदी की प्रख्यात लेखिका डॉ. मृदुला सिन्हा का अद्यतन ग्रंथ है, जिसमें पुराख्यान की आवृत्ति-मात्र नहीं, आधुनिक प्रश्नों की सहज अभिव्यक्ति लक्षित होती है। प्रातःस्मरणीया पंच कन्याओं में अन्यतम अहल्या के शील एवं सतीत्व का यह आत्मकथात्मक आख्यान तथाकथित नारीवाद के दुराग्रह से मुक्त है। पितृसत्ता के संदर्भ में स्त्री-चित्त के मनोविज्ञान की विश्वसनीय प्रस्तुति इसकी विशेषता है, किंतु यहाँ आधुनिक स्त्री-विमर्श की यांत्रिकता एवं गतानुगतिकता के स्थान पर भारतीय संस्कृति में संप्राप्त शिव-शक्ति के अर्द्धनारीश्वरत्व की मान्यता प्रतिष्ठापित की गई है। 'उपन्यास' एक पश्चिमी काव्यरूप है, किंतु यह ग्रंथ भारत की उस परंपरागत औपन्यासिक अवधारणा की प्रतीति कराता है, जिसे मृदुलाजी 'सीता पुनि बोली', 'विजयिनी', 'परितप्त लंकेश्वरी' आदि में उदाहृत कर चुकी हैं। 'उवाच' शब्द के द्वारा वे भारत के 'कथा-कोविदों' की शैली का ही स्मरण दिलाती हैं। वर्णन-क्रम में लोकसंस्कृति के उपादानों के विनियोग से भी इस तथ्य का सत्यापन होता है। आचार्य कुंतक ने प्रबंधगत कथा-विन्यास का विश्लेषण करते हुए 'प्रकरणवक्रता' और 'प्रबंधवक्रता' का उल्लेख किय